सोमवार, 16 मार्च 2020

तटस्थ तुम...



देखो... 
जमाने की नज़रों में 
सब कुछ कितना 
सुंदर प्रतीत होता है न 
मांग में भरा 
ये खूबसूरत सिंदूर,
ये मंगलसूत्र 
सुहाग की चूडियाँ 
ये पाजेब, बिछिया, ये नथिया... 
और.... 
स्वयं में सिमटी हुई मैं... 
जो बटोरती है कीरचें अहर्निश
अपनी तन्हाई के 
और तटस्थ तुम...
तुम... न जाने कब तय करोगे 
अपने जीवन में 
जगह मेरी.. 

क्यों मांग मेरी 
बन गई है 
वो दरिया 
जिसके दोनों किनारे 
एक ही दिशा में गमन कर रहे हैं 
पर आजीवन 
अभिसार की ख्वाहिश लिए
तोड़ देते हैं दम  
और चिर काल तक 
रह जाते हैं अकेले... अधूरे... 
ये ख्वाहिश भी
एक तरफा ही है शायद कि
                     तुम्हारा और मेरा पथ एक है 
पर मंज़िल जुदा... 





रविवार, 8 मार्च 2020

मेरा आधिकारिक अवकाश



वो जो 
इतवार के 
एक दिन का 
आधिकारिक 
अवकाश 
मिलता है मुझे
कहो,  
अपनी कहूँ या 
फिर सुनूँ उनकी.. 
या फिर से 
वही करूँ.. 
जो 
सदा से करती आई हूँ - 
घर के रोजमर्रा के काम 
या 
छः दिन के दफ़्तर
के कामकाज से 
छुटकारा पा.. 
करूँ वो.. 
जो
अच्छा लगता है मुझे 
बस, केवल एक दिन 
पर 
अगर मैं भी 
अपना इतवार मनाऊँ, 
तो क्या... 
वे कहना छोड़ देंगे - 
"जो औरतें बाहर काम करती हैं 
वे घर भी तो संभालती हैं। 
कुछ खास नहीं कर रही हो तुम । " 

हाँ, 
सभी औरतें 
संभालती हैं 
घर और बाहर दोनों 
अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ। 
इतवार पर अधिकार
केवल पुरुष का है 
किन्तु पुरुष नहीं कर सकते 
स्त्री से बराबरी 
हाँ, 
स्त्री और पुरुष की 
कोई बराबरी नहीं 
क्योंकि स्त्रियाँ वार देती हैं 
अपने सारे इतवार 
अपने सारे अधिकार 
अपने परिवार पर 
वही जो पुरुष नहीं कर सकता 
क्योंकि स्त्री और पुरुष 
का कोई मुकाबला नहीं है। 





बुधवार, 4 मार्च 2020

रेल का सफ़र




रेल के सफर
की तरह है जिन्दगी
और हम सब उसके मुसाफिर।
मिला है सबको एक- एक डिब्बा।
किसी को थर्ड क्लास कंपार्टमेंट
तो किसी को आरामदायक,
सुखद ए. सी. की
पर्दों लगी फर्स्ट क्लास कोच।
जिसमें कइयों स्टेशन आते हैं।
और उन स्टेशनों पर चढ़ते है
कई नए मुसाफिर,
नई आशाओं,
नई उम्मीदों की
ढेर सारी गठरी लादे।
सबका अपना-अपना नजरिया
अपना - अपना गंतव्य।
कोई अकेले सफर करता है
तो कोई अपनों के साथ।
कोई अकेला होकर भी
सबको अपना बनाता चलता है।
तो कोई भीड़ में भी अकेला
उद्विग्न, अनमना-सा रहता है।
जिसे शिकायत है सबसे,
अपने आप से भी ।
जिसे न अपने लक्ष्य का पता होता है
न गंतव्य की खबर।
किन्तु हर स्थिति - परिस्थिति
को झेलते, हँसते, मुस्कुराते,
ईश्वर को पूजते,
कोसते हुए एक दिन
सब पहुँचते हैं एक ही स्थान पर
अपने उस परम गंतव्य पर
जिसका स्वरूप
न कभी समझ आया था
न समझ आएगा ।
फिर भी जाने- अनजाने
रेल का यह सफ़र
सब तय करते हैं।




रविवार, 23 फ़रवरी 2020

याद हमें भी कर लेना.... नवगीत

नवगीत 

विधा :कुकुभ छंद (मापनी16,14) 




पल पल हम हैं साथ तुम्हारे *
वरण हमारा कर लेना *
परम लक्ष्य संधान करो जब,*
याद हमें भी कर लेना*

साथ मिले जब इक दूजे का, *
कुछ भी हासिल हो जाए ।*
शूल राह से दूर सभी हो, *
घने तिमिर भी छँट जाएँ।। *
मुट्ठी में उजियारा भर कर, *
दूर अँधेरा कर देना। *
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना ।। *

नहीं सूरमा डरे कभी भी, *
कठिनाई कितनी आई। *
रहे जूझते जो लहरों से,
ख्याति कीर्ति उसने पाई।। *
कष्टों से भयभीत न होना, *
बात गांठ यह कर लेना। *
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना।। *

अभी उजाला हुआ, सखे हे! *
मानव हित कुछ कर जाना। *
पथ में बैरी खड़े मिलेंगे, *
मत पीछे तुम हट जाना।। *
जब जब मुल्क पुकारे तुमको,
कलम छोड़ शर धर लेना।
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना ।। *

पल पल हम हैं साथ तुम्हारे *
वरण हमारा कर लेना *
परम लक्ष्य संधान करो जब,*
याद हमें भी कर लेना*






बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

तेरी यादों में रोया हूँ...




एक ग़ज़ल नुमा रचना

तेरी यादों में रोया हूँ....


हँसा हूँ तेरी बातों पे ,तेरी यादों में रोया हूँ
प्यार है बस तुझी से तो,प्यार के बीज बोया हूँ।

खटकता हूँ सदा तुझको, मुझे य़ह बात है मालूम ,
मगर सपने तेरे देखे ,तेरी यादों में खोया हूँ।

मेरी आँखों के अश्रु भी, तुझे पिघला सके न क्यों
तेरी नफ़रत की गठरी को, दिवस और रात ढोया हूँ।

कदर तुझको नहीं मेरी, तेरी खातिर सहा कितना,
मिली रुस्वाइयाँ फिर भी, प्रीत - माला पिरोया हूँ ।

गए हो लौटकर आना, कभी दिल से भुलाना ना,
नहीं मैं बेवफा दिलबर, वफ़ा में मैं भिगोया हूँ ।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'