मेरी जुबानी : मेरी आत्माभिव्यक्ति
मेरी कविताओं ,कहानियों और भावों का संसार.
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सबरंग क्षितिज :विधा संगम
Pankhudiya
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मेरी प्रकाशित साझा पुस्तकें
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सोमवार, 29 जनवरी 2018
कर्म
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कल गिरा जमीं पर मुट्ठी बांध, कल खोल हथेली जाएगा! दो गज धरती के ऊपर से या दो गज जमीन के नीचे ही, तू माटी में मिल जाएगा! माटी ही ...
रविवार, 28 जनवरी 2018
कहंँवा हो प्यारे सखे
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कहंँवा हो प्यारे सखे गोपियाँ हैं राह तके! दर्शन की प्यास जगी, तन मन में आग लगी! बंसी की मधुर धुन, सुना दो सखे! गोपियाँ हैं राह ...
शुक्रवार, 26 जनवरी 2018
आया बसंत
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आया बसंत, आया बसंत! झनन - झनन बाजे है मन का मृदंग चढ़ गया है सभी पर प्रेम का रस रँग बस में अब चित नहीं बदला है समां- समां स्पर्श ...
शुक्रवार, 19 जनवरी 2018
बवाली बवाल..
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निकली बवाली ये बातें बिना बात मुकाबला बड़ा अलहदा हो गया है बवाली बवाल ने ऐसा बलवा मचाया कि चिट्ठा जगत बावला हो गया है रचे कोई कविता...
गुरुवार, 11 जनवरी 2018
उस दिन - कथाकाव्य
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उस दिन भोजन पकाकर पसीने से तर-ब-तर बहू ने कुछ ठंडी हवा खाने की चाह में रसोई की खिड़की से बाहर झाँका ही था कि पूरे घर में खलबली सी म...
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