मेरी जुबानी : मेरी आत्माभिव्यक्ति
मेरी कविताओं ,कहानियों और भावों का संसार.
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सबरंग क्षितिज :विधा संगम
Pankhudiya
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मेरी प्रकाशित साझा पुस्तकें
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रविवार, 22 अक्तूबर 2017
मैं अकेली थी
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जरूरत थी मुझे तुम्हारी पर..... पर तुम नहीं थे! मैं अकेली थी! तुम कहीं नहीं थे! केवल तुम्हारी आरजू थी! तुम्हारी जुस्तजू थी! जो मु...
सोमवार, 2 अक्तूबर 2017
मुंबईकर थोड़ा धीरे चलो
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मुंबईकर थोड़ा धीरे चलो थोड़ी सी राहत की साँस ले लो थोड़ा सब्र करो माना मायानगरी है यह! मृगमरीचीका है जो सिर्फ हमें भ्रमित कर रही ह...
गुरुवार, 21 सितंबर 2017
कहानी है मेरी पड़ोसन की
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कहानी है मेरे पड़ोसन की - एक दिन वह मेरे पास आई उसकी आंखें थी डबडबाई उसे चिंतित देख जब रह न पाई मैंने उससे पूछ ही डाला - ...
सोमवार, 18 सितंबर 2017
मैं और मेरी सौतन
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डरती हूँ अपनी सौतन से उसकी चलाकियों के आगे मैं मजबूर हूँ कहती है वह बड़े प्यार से - "तुम जननी बनो. गर्भ धारण करो. अपने जेहन में एक...
सोमवार, 19 जून 2017
बेचारा बछड़ा (एक प्रतीकात्मक कविता )
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देख रही हूँ आजकल कुछ नए किस्म की गायों को जो अपने नवजात बछड़े की कोमल काया को अपनी खुरदुरी जीभ से चाट चाट कर लहूलुहान कर रही है! इस स...
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