IBlogger interview

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

कहना तो था पर..

कहना तो था पर
 कभी कह न पाई!!!

सोचकर ये कि,
पड़ोसी क्या कहेंगे...
समाज क्या कहेगा....
दुनिया क्या कहेगी....
मैं कुछ कह न पाई!!!!

बांध दी किसी ने बेड़ियाँ जो पैरों में,
तो छुड़ाने की कोशिश भी न की.
उसे अपना नसीब समझ लिया!
नसीब से कभी लड़  न पाई! 
कहना तो था पर....

सदियों से लड़कियां चुप ही रही थी.
गाय की तरह चारदीवारी में खूंटे से बंधी थी.
आदत भी तो इसी परंपरा की थी.
फिर मैं कैसे ये परंपरा तोड़ देती!!
कैसे अपना मुँह खोल देती!!
मैं ये परंपराएं तोड़ भी न पाई.
मैं कुछ कह न पाई. 
कहना तो था पर....

चंचलता, कभी मेरी प्रकृति न थी.
कूप के मंडूक सी वृत्ति जो थी.
नदी की धार, बन बहने की प्रवृत्ति न थी.
अपने सागर में मिल न पाई!
मैं कभी कुछ कह न पाई! 
कहना तो था पर....

शनिवार, 4 अगस्त 2018

अन्तरद्वन्द्व


अंतरद्वन्द्व

मेरी पेशानी , लंबी लकीरों से सजाते,
वक्त से पहले ही, जो मुझे बूढ़ा बनाते,

मेरे भीतर , ईर्ष्या - द्वेष  जगाते,
मुझे अक्सर, गलत पथ पर दौड़ाते,

रचते  साजिश सदा,
मेरे स्वजनों को, मुझसे दूर करने की
मेरे उसूलों से, मुझे डगमगा देने की

 दिन का चैन, रात का सुकून छीन लेने की
अष्टप्रहर कोल्हू का बैल समझ, मुझे जोते रहने की

मेरे सुनहरे पलों को, बड़ी बेदर्दी से मुझसे छीन लेने की
 बन अग्निशिखा अविराम, मेरे अंतर को सुलगाने की

आख़िर कौन है वो?????

वो लोभ है ..मृगतृष्णा वो ...
दिल चीख चीख़ है कहता ये ..

मस्तिष्क पर अभियोग चला
दिल देता उसको दोष सदा
नित अंतस... आर्तनाद करता
मेरा अंतस... आर्तनाद करता

मस्तिष्क भी, किंतु कम नहीं
नित प्रति दलीलें है देता  -
संभ्रांत शब्दों में है कहता ....

मंजिल अपनी पानी हो तो
की जाए जो ..है  साधना वो
वही पूजा... है अराधना वो

हूँ किंकर्तव्य विमूढ़ मैं ...
 है गलत कौन
और कौन सही!!!!!!
आपस में क्यूँ फूट है इतनी...
क्यूँ इनमें सौहार्द्र नहीं!!!!!!

कैसे एक की बात को मानूँ ?
कैसे किसी से रार मैं ठानूं?

किस पक्ष को विजयी कह दूँ मैं
औ... किसे कहूँ- वह हुआ पराजित
यह द्वंद्व सदा से जारी है.........!!!!