IBlogger interview

शनिवार, 2 जनवरी 2016

उम्र अभी कच्ची है मेरी ,



बाल श्रम

रंगीन किताबें बस्तों की,
मुझे अपनी ओर खिंचती हैं
मेरा रोम - रोम आहें भरता ,
और रूह मेरी सिसकती है।

अपनी बेटी की झलक तुझको ,
क्या मुझमें दिखाई देती नहीं।
मत भूलो एक इनसान हूँ मैं,
कोई रोबो या मशीन नहीं।

कभी जन्मदिन कभी वर्षगाँठ की,
आये दिन दावत होती है।
कभी एक निवाला मुझे खिलाने ,
की क्यों इच्छा होती नहीं।

चौबीस घंटे कैसे मैं खटूँ,
मुझपर थोडी सी दया कर दो।
निज स्वार्थ छोड़ दो तुम अपना,
आँखों में थोड़ी हया भर लो।

उस खुदा ने मुझे छला तो छला,
क्यों तुम मुझसे छल करते हो।
उसने तकदीर बिगाड़ी है,
तुम भी निष्ठुरता करते हो।

ऊँचे महलों के वारिस तुम ,
मैं झुग्गी झोपड़ी से आई।
दो जून की रोटी की खातिर,
बचपन मैं पीछे छोड़ आई।

उम्र अभी कच्ची है मेरी ,
श्रम इतना मुझसे होता नहीं।
मुझे मेरा स्कूल बुलाता है,
क्यों तुम्हे सुनाई देता नहीं।

देखे हैं ख्वाब कई मैंने ,
हौसलों की मुझमे ताकत है।
पोछा बरतन मत करवाओ,
कुछ बन जाने की चाहत है।

पोछा बरतन मत करवाओ,
कुछ बन जाने की चाहत है......


सुधा सिंह

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

फिर एक जीवन बर्बाद हुआ

सुनसान अँधेरी गलियों में,
उस मैले - कुचैले चिथड़े पर
वह दीन - अभागा सोता है।
माँ के आँचल का अमृत,
वो क्या जाने क्या होता है ।

माँ की ममता न मिली उसको,
न पिता का सिर पर हाथ रहा।
न कोई उसका दोस्त बना,
न किसी का उसको साथ मिला।
खुली जो आंखें, छत न थी,
हर तरफ ही उसको घात मिला

फुटपाथ ही माँ की गोद बनी,
छद बन गया उसका आसमां।
धूप से प्रतिदिन लड़ता है वह,
और ठण्ड से होता रोज सामना।
बरसात उसे अपनी - सी लगे
जी चाहे कोई मिले 'अपना'।

पेट की आग बुझाने को,
कूड़े का ढेर ढूँढ़ता है।
कभी बटोरे लोहा -लक्कड़
बोतलें कभी बटोरता है।
नंगे पैरों से खाक छानता
मारा -मारा वह फिरता है।

कभी खिलौनों पर मन आता
कभी होटल में खाने का।
बर्गर और कोल्ड्रिंक का
और कभी सिनेमा जाने का।
लंबी गाड़ी का स्वप्न कभी
कभी बड़ा अफसर बन जाने का।

इक आस लिए  जगता सुबह
इक आस लिए सो जाता है
ख़ुशियों से भरा होगा जीवन
यह सोच के दिल बहलाता है।
पर खाली हाथ सदा होता
जीवन उसका कुम्हलाता है

ज्ञान उसे अक्षर का नहीं
पर  ख़्वाबों से अनजान नहीं
पंछी बनने की चाहत है पर
पंखों में ही जान नहीं।
फिर एक जीवन बर्बाद हुआ
पर किसीको इसका भान नहीं ।

फिर एक जीवन बर्बाद हुआ
पर किसीको इसका भान नहीं ।

सुधा सिंह