शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

उस घडी का इंतजार मुझे अब भी है। (एक प्रतीकात्मक कविता)



उस घडी का इंतजार मुझे अब भी है।

चाहत तो ऊँची उड़ान भरने की थी।
पर पंखों में जान ही कहाँ थी!
उस कुकुर ने मेरे कोमल डैने
जो तोड़ दिए थे।
मेरी चाहतों पर ,
उसके पैने दांत गड़े थे।
ज्यों ही मैंने अपने घोंसले से
पहली उड़ान ली।
उसकी गन्दी नज़रे मुझपर थम गई।
वह मुझपर झपटने की ताक में
न जाने कब से बैठा था।
न जाने कब से ,
अपने शिकार की तलाश में था।
उसकी नजरों ने,
न जाने कब मुझे कमजोर कर दिया।
डर के मारे मैं संभल भी न पाई ।
पूरी कोशिश की ,
पर जमीन पर धड़ाम से आ गिरी।
फिर मेरा अधमरा शरीर था
और उसकी आँखों में जीत की चमक।
वह कुकुर अपनी इसी जीत का जश्न
रोज  मनाता है।
और अपनी गर्दन को उचका -उचकाकर
समाज में निर्भयता से घूमता है।
मानो उसने कोई विश्वयुद्ध जीत लिया हो।
उसके कुकुर साथी भी ,
इस कार्य में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
और कमजोरों पर ,
अपनी जोर आजमाइश करते हैं।
न जाने ऐसे कुकुरों के गले में ,
पट्टा कब पहनाया जायेगा !
तन के  घाव भले ही भर गए हैं,
आत्मा पर पड़े घाव कब भरेंगे !
क्या वो दिन कभी आएगा कि,
मैं दोबारा बेख़ौफ़ होकर
अपनी उड़ान भर पाऊँगी !
अपने आसमान को
बेफिक्र होकर छू पाऊँगी!
उस दिन-उस घडी का इंतजार
मुझे अब भी है।

शनिवार, 19 सितंबर 2015

सेल्फ़ी के साइड इफ़ेक्ट

आया है जमाना सेल्फी का ,
और  लोग स्वयं में मस्त है।
ऐसा क्रेज कभी न देखा,
ये क्रेज  बड़ा जबरदस्त है।

बच्चे का जब जनम हुआ ,
तब डॉक्टर ने सेल्फी ले डाली।
देश विदेश में भ्रमण किया,
लगे हाथ सेल्फी ले डाली।

सेल्फी ली ऊँचे गुम्बद चढ़,
सेल्फी ली पहाड़ के शिख पर।
हो जन्मदिवस या पुण्यतिथि,
सेल्फी ली खूब बढ़ चढ़कर।

पति मरा सेल्फ़ी ले डाली,
बम फूटे सेल्फ़ी ले डाली।
सांप के संग सेल्फी की खातिर ,
जान यमराज के हाथ में डाली।

एक निरा सेल्फी की खातिर ,
पार्लर जाओ खूब सज धज लो।
समय बिताना संग अपनों के,
यह दृश्य हुआ अदृश्य समझ लो।

सेल (cell )को अपना मित्र बनाकर,
सेल्फी ली पोस्ट कर डाली।
कोई मौका छूट न पाया,
हर मौके सेल्फी ले डाली।

मंदिर जाओ मस्जिद जाओ,
जाओ चर्च और गुरद्वारे।
किसकी किसको फिक्र यहाँ है,
सेल्फी में सब मस्त हैं प्यारे।

सेल्फी से प्यार हुआ इतना,
कि युवा देश का भरमाया।
आधुनिक बनने की चाह में,
अपना चैन -सुकून गँवाया।

'सेल्फी वेल्फ़ी' छोड़ दो भैया,
मन को अपने मत भरमाओ।
यह  काम निरर्थक इसे छोड़ दो,
दिल से अपना फ़र्ज़ निभाओ।


सुधा सिंह




शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

मेघा रे।।

कृषकों के दृग हैं अम्बर पर,
आ जाओ अब मेघा रे।
तपन करो अब दूर धरा की,
ऐसे बरसो मेघा रे।
दूर देश की छोड़ यात्रा,
दे दो दर्शन अपना रे।

नदी-ताल सब सूख रहे हैं,
पय बरसाओ मेघा रे।
नगर -ग्राम सब पड़ा है सूना, 
जल्दी बरसो बदरा रे।
नयन तुम्हारे दरस को तरसें,
 झर गया सबका कजरा रे।

बहुत ही चुकी लुका -छिपी ,
अब मत बहकाओ मेघा रे।
खग ,मृग ,पादप, नर औ नारी,
सबकी प्यास बुझाओ रे।
मोर पपीहे लगें नाचने ,
बरसो यूँ सारंगा रे।

लूह बदन को जला न पाये, 
जमके बरसो मेघा रे।
उमड़ घुमड़ के ऐसे बरसो ,
खुश हो जाये सगरा रे।
धान्य से सबका घर भर जाये,
भर जाये सबका अँचरा रे।

हम सबको अब मत तरसाओ 
अब तो आ जाओ  मेघा रे।।

रविवार, 6 सितंबर 2015

गुरु की महिमा


गुरु की महिमा का कोई, कैसे करे बखान।
गुरु केवल शब्द नहीं ,वह है गुणों की खान।

शिष्य के मन को उज्वल करता ,सूर्य समान गुरु का ज्ञान।
बिना गुरु भविष्य तमोमय,और स्याह है वर्तमान।

गुरु की महिमा समझी जिसने ,बन बैठा वह मनुज महान।
भूला विश्व कभी न उसको ,मात - पिता की बढाई शान।

गुरु द्रोण से पाकर शिक्षा ,अर्जुन देखो बना महान।
तीरंदाज न उसके जैसा,कौरव का किया काम तमाम।

आचरेकर सा गुरु जो पाया , बना सचिन क्रिकेट का भगवान।
देश - विदेश में नाम कमाया,और बढाई देश की शान।

परमहंस की बात मानकर, नरेंद्र बन गये विवेकानंद।
स्वज्ञान का मनवाकर लोहा, कर दिया पूरे विश्व को दंग।

पकड़ के उंगली कदम बढ़ाओ, करो नहीं खुद पर अभिमान।
दंभ को अपने रखो किनारे ,न कभी करो उनका अपमान ।

देव वाणी है ,गुरु की वाणी ,पूज्य भी वो ईश्वर के समान।
संशय उन पर कभी करो न , है ईश्वर पर यह शक के समान।

 सेवा में उनकी जुट जाओ, पा जाओगे आसमान।
धन - दौलत की प्यास उन्हें न ,उनको केवल दो सम्मान।

राह गुरु जो दिखलाते हैं , सदा ही उस पर करो गमन।
करके आत्मसात गुरु ज्ञान , महका लो तुम अपना चमन।







गुरुवार, 3 सितंबर 2015

आरक्षण



आरक्षण की आग लगी है ,
देश में ऐसा मचा बवाल ।
सोना की चिड़िया था जो,
चलता अब कछुए की चाल।

अम्बेडकर, गांधी ,नेहरू,
सबने चली सियासी चाल ।
देश की नीव को करके  खोखला ,
पकड़ा दी आरक्षण की ढाल।

आरक्षण की लाठी लेकर,
 कौवा चला हंस की चाल।
मेहनतकश मरता बेचारा ,
फंसके आरक्षण की जाल।

अनूसूचित जाति में जन्मे ,
तब तो समझो हुआ कमाल।
कुर्सी पर आराम से बैठो ,
और जेब में हाथ लो डाल।


बिना कुछ किये मिलेगा मेवा,
सोच न क्या है देश का हाल।
मेहनत से हमको क्या है लेना,
हम अनुसूचित जाति के लाल।

हम बैठ मजे से ऐश करेंगे ,
न होगा हमारा बांका बाल।
जिनको मरना है मर जाये,
हमसे न कोई करे सवाल।

उन सबका अधिकार छीनकर ,
कर देंगे उनको कंगाल।
पढ़ लिखकर हमको क्या करना ,
है साथ हमारे आरक्षण की ढाल।

वोट बैंक भी पास हमारे ,
और नेता है हमारी मुट्ठी में।
जिनको अपनी कुर्सी प्यारी,
वो करें हमारी देखभाल।





बुधवार, 2 सितंबर 2015

अस्तित्व

अस्तित्व

माना, तू  पापा का दुलारा है।
माँ की आँखों का तारा है।
उनका प्यार, उनकी दौलत तेरे साथ है।
और तुझे सहारे की दरकार है।

 क्या हुआ कि मैं एक लड़की हूँ।
मेरा भी एक अस्तित्व है।
मैं अपना आसमाँ खुद तलाशूंगी।
मैं अपनी तकदीर खुद लिखूंगी।
मुझे किसी सहारे की जरुरत नहीं।
क्योंकि मेरे साथ ऊपर वाली सरकार है।

जाने कैसे एक ही कोख से जन्म लेने बाद भी
 बेटा अपना और बेटी पराई होती है।
यह सोचकर कई बार मेरी आँखे नम होती हैं।
पर मैं स्वयं ही सशक्त हूँ,
मुझे हार नहीं स्वीकार।

मेरा आत्मिवश्वास ,
मेरा सबसे बड़ा सहारा है।
मुझे मेरा आत्मसम्मान सबसे प्यारा है।
भीख पर तू जी सकता है।
मुझे तो उधार की जिंदगी से भी घृणा  है।

सोमवार, 31 अगस्त 2015

दिल की किताब




बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है ।
पर इस पर थोड़ी सी धूल जमी है,
कुछ दूषित नजरों के साये है ,
कुछ अपनों के है  कुछ पराये हैं,
इन्हें साफ़ करने की इक आस जगी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

कुछ पन्ने अभी कोरे है ,
कुछ पर काली स्याही है,
कुछ को कीड़े खा चुके ,
कुछ को खाने आये है,
बहुत दिनों बाद इन पर निगाह थमी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

कहीं भीगी पलकों की नमी है,
कहीं माँ के आंचल की गर्मी है,
कुछ में  मीठी मीठी यादें  छुपी है,
फिर भी  ये मेरे सपनों से सजी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

कहीं खुशियों का सवेरा है,
कहीं गहरे दुखों का अँधेरा है,
ये मेरी किताब है ,
इसे मैंने सजाया है ,मैंने सँवारा है,
बहुत दिनों बाद ये मुझसे मिली है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।

इसमें कुछ अंतरंग पलों की स्मृतियां है,
कुछ नन्हे मुन्नों की गूँजती किलकारियां है,
कहीं सबकुछ खो देने की हताशा है,
कहीं दुनिया पा लेने की अभिलाषा है,
ये मेरे अहसासों से सजी है,
बहुत दिनों बाद दिल की किताब खुली है।