शनिवार, 31 दिसंबर 2016

जिंदगी-तेरी आजमाइश अभी बाकी है!

जिन्दगी ...
तेरी आजमाइश अभी बाकी है,
मेरे ख्वाब अभी मुकम्मल कहाँ हुए?

मेरी फरमाइशें अभी बाकी है ।
कई ख्वाहिशें अभी बाकी हैं।

माना कि ..
दूसरों की भावनाओं से खिलवाड़ करना,
तेरी आदत में शुमार है।
पर मुझे तुझ पर बेइंतहां ऐतबार है।

तू कभी किसी को जमींदोज करती है ,
कभी आसमां की बुलंदी तक पहुँचाती है।
कभी मौत के दर्शन कराती है,
तो कभी जीवन के सुनहरे सपने दिखाती है।

किसी  को रुलाती है
किसी को गुदगुदाती है ।
तेरी मर्जी हो, तो ही ,
लोगों के चेहरों पर मुस्कान आती है।

कभी इठलाती, बलखाती ,शरमाती- सी सबके दिलों में घर बनाती है।
जब विद्रूपता की हद से से गुजरती है, तो लोगों को सदा के लिए मौन कर जाती है।

जिंदगी ..
अभी तुझसे बहुत कुछ सुनना
और तुझे सुनाना बाकी है ।
क्योंकि तू  कैश नहीं ,चेक है ।
तुझे भुनाना बाकी है।

जिंदगी
तेरा हसीन रूप ही अच्छा है।
तू हमें किसी जंजाल में उलझाया न कर।
तू दोस्त बनकर आती है तो सबके मन को भाती है।
यूँ हमें अपनी सपनीली दुनिया से दूर न कर।

भूलना मत..
मेरी फरमाइशें अभी बाकी है ।
कई ख्वाहिशें अब भी बाकी हैं।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

माना कि मंजिल दूर है....




माना कि मंजिल दूर है,
पर ये भी तो मशहूर है.....

मजबूत इरादे हो अगर,
पाषाण भी पिघला करते है।
दृढ निश्चय कर ले इंसाँ तो,
तूफ़ान भी संभला करते हैं।

हौसले बुलंदी छुएं तो ,
नभ का मस्तक झुक जाता है।
जब साहस अपने चरम पे हो ,
तो सागर भी शरमाता है।

मुश्किलें बहुत सी आयेंगी,
तुझे राहों से भटकायेंगी।
मंजिल पाना आसान नही,
ये कमजोरों का काम नही।

बैरी षणयंत्र रचाएंगे,
शत्रु भी आँख दिखाएंगे।
भयभीत न हो, तू युद्ध  कर।

आलस आवाजें देगा तुझे,
मस्तिष्क तुझे भरमायेगा।
मुड़कर पीछे तू  देख मत,
बस निकल पड़।

रुक गया तो तू पछतायेगा,
तेरे हाथ न कुछ भी आएगा।
अनजान डगर ,अनजान सफ़र,
ले कस कमर और राह पड़।

'मांझी' की हिम्मत के आगे,
पर्वत ने घुटने टेके थे।
उस मांझी को तू याद कर ।
बस लक्ष्य साध और गति पकड़।

हर बाधा को पार कर, तू आगे बढ़।
बस आगे बढ़.....


शनिवार, 17 दिसंबर 2016

ये झुर्रियाँ..।


ये झुर्रियाँ..।


ये झुर्रियाँ मामूली नहीं,
ये निशानी है अनुभवों की।
इन्हें अपमान न समझो
कोने में पड़ा कूड़ा नहीं ये,
इन्हें घर का मान और सम्मान समझो।

हर गुजरे पल के गवाह है ये,
इन्हें  बेकार  न समझो।
चिलचिलाती धूप में छांव है ये,
इन्हें अंधकार न समझो।

ये पोपले चेहरे कई कहानियां कहते है,
सीख लो इनसे कुछ।
इन्हें पुराना रद्दी  या अख़बार न समझो


उंगली पकड़ कर चलना सिखाया था जिसने  कभी ,
इन्हें अपनी राह का रोड़ा, कभी  यार न समझो।

मिलेगा प्यार और दुलार, इनके पास बैठो ।
इन्हें सिर्फ झिकझिक और तकरार न समझो।


बूढी लाठी जब चलती है, अपनो से ठोकर खाती है।
बन संबल इनके खड़े रहो ,
इन्हें धिक्कार न समझो।

माना कि बूढ़े ,कपकपाते हाथों में, अब वो जान नहीं ।
पर  जब उठेंगे ,देंगे ये आशीष ही, हर बार समझो।

ये हमारी पूँजी हमारी धरोहर है
इन्हें संभालो ,इन्हें संजोओ,
इन्हें धन दौलत से नहीं,
बस तुम्हारे प्यार से सरोकार है समझो।

डूबता ही सही, पर याद रखो सूरज हैं ये
ढलेंगे तब भी आकाश में ,
अपनी लालिमा ही बिखेरेंगे याद रखो।







सोमवार, 5 दिसंबर 2016

यदा- कदा....



1:
पास होकर भी ,
तेरे पास होने का, 
अहसास नही होता।
न् जाने ये कैसी दूरी है ,
हम दोनों के दरमियाँ।
2: 
दिल तोड़ना और साथ छोड़ना 
तो ज़माने का दस्तूर है ऐ दोस्त।
कायल तो हम तुम्हारे तब होंगे , 
जब् तुम् साथ देने की कला सीख लोगे ।
3:

अपनों को ठुकराना ,
गैरों को अपना बताना 
और इस बात पर इतराना
कि जहाँ में चाहने वाले बहुत हैं तेरे।

ऐ दोस्त,
क्या तू इतना भी नही जानता
कि हाथी के दाँत खाने के और 
दिखाने के और होते हैं।