शनिवार, 18 जुलाई 2015

हम हंसने को मजबूर हो गए।




अश्रु  आखों  से  क्या  गिरे,
वो हमसे ही दूर हो  गए।
झूठी  हंसी  दिखाने  को,
हम भी  मजबूर  हो गए ।

वक्त  भी  बड़ा सितमगर है,
अपने  ही  मगरूर  हो गये।
हम पर प्यार लुटाने  वाले ,
न जाने क्यों  क्रूर  हो गये।

कैसा दस्तूर है  दुनिया  का ,
दिल  में  लाखों  गम  समेट कर  भी
हम हंसने  को मजबूर  हो  गए।

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